एक और हमला
Posted by amitabhtri पर अगस्त 17, 2006
कल जब सारा देश कृष्ण जन्माष्टमी के उल्लास के डूबा हुआ था तो सुदूर पूर्वोत्तर में आतंकवादी हिन्दुओं के विरूद्ध अपने अभियान को गतिमान करते हुये श्रद्धालुओं पर बम से आकमण कर रहे थे. स्वतन्त्रता दिवस से ही मैं भी शेष देशवासियों की भाँति सांसे थामे हर पल के घटनाविहीन व्यतीत होने की प्रतीक्षा कर रहा था. परन्तु कृष्ण जन्माष्टमी का दिन इतना सौभाग्यशाली न रह सका और दिन बीतते-बीतते हिन्दू मन्दिर पर आतंकवादी आक्रमण का समाचार आ ही गया. मणिपुर की राजधानी इम्फाल में हवाई अड्डे के निकट पश्चिमी जिले में तुलीहल नामक स्थान पर स्थित राज्य के सबसे बड़े इस्कान मन्दिर पर हुये बम धमाके में पाँच लोगों की घटास्थल पर ही मृत्यु हो गई जब कि 50 लोगों को घायलावस्था में अस्पताल पहुँचाया गया जिनमें एक दर्जन लोगों की हालत अत्यन्त गम्भीर बताई जा रही है. इस आतंकवादी आक्रमण की जिम्मेदारी किसी भी संगठन ने नहीं ली है और राज्य के पुलिस अधिकारी किसी भी आशंका के सम्बन्ध में कुछ नहीं बोल रहे हैं. परन्तु इस आक्रमण के स्वरूप के आधार पर कुछ निष्कर्ष अवश्य निकाले जा सकते हैं. यह आक्रमण मणिपुर के उस क्षेत्र में हुआ है जो वैष्णव मतावलम्बी मीती समुदाय का क्षेत्र है और यहाँ यह समुदाय पूर्वोत्तर अलगाववादियों के निशाने पर सदैव रहा है, अत: इस सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता कि स्थानीय उग्रवादियों और जिहादी संगठनों ने आपस में हाथ मिला लिया है. इस बात की आशंका काफी समय से खुफिया एजेन्सियों को रही है कि पूर्वोत्तर के विभिन्न उग्रवादी संगठन इस्लामी संगठनों के साथ मिलकर आतंकवाद को एक नया आयाम प्रदान कर सकते हैं. पूर्वोत्तर राज्यों में स्थित प्रमुख हिन्दू श्रद्धा केन्द्र इस्लामी आतंकवादियों के निशाने पर हैं जिसकी पुष्टि उस समय हुई जब मुम्बई धमाकों के बाद असम में प्रसिद्ध कामाख्या मन्दिर का दौरा करने वाले मुस्लिम कट्टरपंथियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया जो छद्म हिन्दू नाम से इस मन्दिर का एकाधिक बार दौरा कर चुके थे. इस्लामी आतंकवादियों द्वारा पूर्वोत्तर को भी अपने केन्द्र के रूप में विकसित करने की योजना का रहस्योद्घाटन भी मुम्बई विस्फोटों के बाद तब हुआ था जब गुजरात से लेकर कोलकाता तक कई मदरसों और तबलीग जमात के कार्यकर्ता विस्फोटों के तत्काल बाद मेघालय चले गये थे और पुलिस ने उन्हें पूछताछ के लिये हिरासत में लिया था. वास्तव में बांग्लादेश के साथ पूर्वोत्तर की सीमा से निकटता इन इस्लामी आतंकवादियों के लिये वरदान सिद्ध हो रही है. इम्फाल में हुय़े इस नवीनतम आक्रमण को पूरी गम्भीरता से लेने की आवश्यकता है जो हिन्दुओं के विरूद्ध चलाये जा रहे इस्लामी जिहाद का ही एक भाग है. कल इस आक्रमण का समाचार आने पर सर्वाधिक निराशा हमारे टेलीविजन चैनलों की प्रतिक्रया पर हुई.आम तौर पर जनता को जबरन अपनी चीजें परोसने के आदी चैनल अपनी इसी प्रवृत्ति में संलग्न रहे और श्रीलंका में हो रही त्रिकोणीय क्रिकेट श्रृंखला से दक्षिण अफ्रीका की वापसी उनके लिये इम्फाल विस्फोट से अधिक महत्व का विषय रहा. इसके साथ ही आतंकवादी होने की अफवाह मात्र के आधार पर लन्दन से अमेरिका जा रहे विमान को आपात स्थिति में बोस्टन उतारे जाने को चैनल ब्रेकिंग न्यूज मान रहे थे और इम्फाल विस्फोट के सच को छुपाकर सच से मुँह चुरा रहे थे. इससे यही प्रतीत होता है कि इलेक्ट्रानिक मीडिया के लिये औपनिवेशिक खेल की चमक और यूरोप की दहशत अपने देश के निर्दोष लोगों के जीवन से बढ़कर है. यदि इलेक्ट्रानिक मीडिया ने कृष्ण मन्दिर में हुये विस्फोट के सच को जानबूझकर छुपाया तो अपने पत्रकारिता धर्म के साथ छल किया और यदि क्रिकेट के समाचार को इम्फाल विस्फोट से अधिक महत्वपूर्ण समझा तो यह उसकी संवेदनहीनता का परिचायक है.
संजय बेंगाणी said
अमुमन पुर्वोत्तर के समाचारों को प्राथमिकता नहीं मिलती. मैं असम में कई वर्षो तक रहा हूं इअस लिए वहाँ के जमीनी हालातो से अच्छी तरह परिचित हूँ. वहाँ कश्मीर को भी शर्मा दे ऐसे हालात होने वाले हैं.
अफ़लातून said
पूर्वोत्तर भारत या ‘उपेक्षित ऊर्वशी अंचल’ के बारे में कितनी कम जानकारी होती है हम सब के पास.माईती (मीती नहीं)समुदाय वैश्नव है और बांग्ला लिपि से अलग,थाई लिपि के ज्यादा निकट,अपनी लिपि की तलाश में है.भारतीय सैन्य व अर्ध सैन्य बलों के अत्याचारों के प्रतिकार में शुरु हुए व्यापक जनान्दोलन को शेष भारत के कितने ‘हिन्दुओं’ का समर्थन मिला था ?उल्फ़ा और आई.एस. आई. के तालुकातों के बारे में जानते हुए भी क्या उसका उल्लेख क्यों नहीं है आपकी टिप्पणी में?उल्फा में अधिसंख्य हिन्दू हैं,क्या इसीलिये?हर प्रकार की आतंकी घटना का विरोध होना चहिये लेकिन उन उपेक्षापूर्ण नीतियों को नज़र -अन्दाज भी न करें जब चीनी हमले के वक़्त जवाहरलालजी ने पूर्वोत्तर भारत को रेडियो से बिदाई संदेश- सा दे दिया था.अरुणाचल (तब का नेफ़ा ) के जिन गांवों में कभी आईना नही देखा था, उन्हें आईना और माओ तथा नेहरू की तसवीर दिखा कर वे पूछते थे,’तुम्हारा चेहरा किससे मिलता है ?’
आदिदेव विश्वनाथ के कैलाश-मानसरोवर की मुक्ति की कल्पना भी एक ‘छद्म धर्म निर्पेक्ष’और नस्तिक लोहिया ने ही की जो ‘हिन्दू बनाम हिन्दू’ के संघर्ष से वाकिफ़ थे.