आम मुसलमान
Posted by amitabhtri पर अगस्त 20, 2006
इस्लामी आतंकवाद के इस युग में आम मुसलमानों की स्थिति का अध्ययन अपने आप में एक रोचक विषय है. काफी दिनों से मेरी यह इच्छा थी कि भारत के सामान्य मुसलमानों की इस समस्या पर राय जानने का अवसर मिले. कल मेरी यह इच्छा स्वत: पूर्ण हो गई जब मेरे घर में इन दिनों लकड़ी का काम रहे एक बढ़ई ने स्वयं इस बिषय पर चर्चा आरम्भ कर दी. प्यारे मियाँ नाम का यह बढ़ई मुसलमान है और मेरे बारे में इतना जानता है कि मैं कुछ लिखने-पढ़ने का काम करता हूँ. कल काम करते-करते उसने टेलीविजन पर समाचार सुना कि भारत में आने वाले दिनों में कुछ आतंकवादी हमले हो सकते हैं. इस समाचार के बाद उसने बातचीत आरम्भ की. उसकी बातचीत में दो-तीन बातें मोटे तौर पर निकल कर सामने आईं. उसका कहना था कि ये उग्रवादी अत्यन्त सुविधा सम्पन्न और शातिर हैं और पुलिस इन तक तो पहुँच नहीं पाती बेगुनाह मुसलमानों को अपना निशाना बनाती है. इस सम्बन्ध में उसने लाल किले पर हुये आतंकवादी हमले का उदाहरण देते हुये कहा कि इसके असली आरोपियों को तो काफी बाद में पकड़ा गया उससे पहले पुलिस ने रमजान महीने में एक निर्दोष मुसलमान को इन काउन्टर में आतंकवादी बताकर मार गिराया. इसके बाद प्यारे मियाँ ने मुसलमानों को सन्देह की दृष्टि से देखे जाने का मुद्दा उठाया. उनका कहना था कि आज हर दाढ़ी वाले पर शक किया जा रहा है. अन्त में प्यारे मियाँ ने मुझसे ही पूछा आखिर आतंकवादी ये हमले क्यों कर रहे हैं. मेरा उत्तर था कि इन आतंकवादियों की भाषा में वे इस्लाम की लड़ाई लड़ रहे हैं और मुसलमानों पर दुनिया भर में हो रहे अत्याचार का बदला ले रहे हैं. इस पर उस एक सामान्य मुसलमान का जिसने अपने धर्म के पालन में लड़कियों को पढ़ाया नहीं और जो दिन भर मजदूरी कर अपना पेट पालता है जो उत्तर था वह चौंकाने वाला था. इस उत्तर पर उन लोंगो को विशेष ध्यान देना चाहिये जो मानते हैं कि आम मुसलमान इस अन्तरराष्ट्रीय मुस्लिम राजनीति से नहीं जुड़ा है. प्यारे मियाँ ने कहा कि जिस तरह ईराक और लेबनान में इजरायल और अमेरिका निर्दोष मुसलमानों को रोज मार रहे हैं उससे तो आतंकवादी ही पैदा होंगे. आखिर दुनिया ऐसे काम क्यों नहीं रूकवाती जिस दिन ये रूक गया आतंकवाद भी रूक जायेगा. प्यारे मियाँ की इस पूरी बातचीत से मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि दुनिया भर के मुसलमानों की सोच एक है और उनके जनमत निर्माता और उनकी जागरूकता के केन्द्र मौलवी और जुमा की सामूहिक नमाज उन्हें ऐसे तर्क सिखा रहे हैं कि वे इस्लामी आतंकवाद को न्यायसंगत ठहरा सकें. इसके अतिरिक्त समस्त दुनिया के मुसलमानों के मध्य उन पर अत्याचार का झूठा और मनगढ़न्त प्रचार किया जा रहा है. अब भी समय है यदि सामान्य मुसलमानों को इस इस्लामी आतंकवाद के वैश्विक आन्दोलन से परे रखना है तो इनके मस्तिष्क को अपने अनुसार दिशा देने वाली मुस्लिम प्रचार मशीन पर कड़ी निगाह रखनी होगी और मस्जिदों और उसमें होने वाली तकरीरों पर भी ध्यान देना होगा. अन्यथा भारत की मुस्लिम जनसंख्या को आतंकवाद के विरूद्ध युद्ध में हम साथ नहीं ला पायेंगे और न चाहते हुये भी यह धर्म युद्ध का स्वरूप ग्रहण कर लेगा.
आलोक said
हिन्दुस्तान इज़्राइल का विरोध क्यों नहीं करता? क्यों अमरीका की चमचागिरी करता है?
हिमांशु said
दूरी को घटाना होगा। हर एक हिन्दू कम से कम एक मुसलमान को मित्र बना ले तो सब बात खतम हो जायेगी। सिर्फ़ बातों से और नेताओं से अपेक्षा करने से कुछ नहीं होगा।
silkboard said
sahee kaha Himanshu. Dosti se har doori ghat sakti hai. aur hindustani musalmaan shaayd sabse jyaada progressive musalmaan hain. agar aisa nahin hota to desk ke kone kone mein bomb fat rahe hote. (20%)