नाकाम साजिश
Posted by amitabhtri पर अगस्त 20, 2006
इस दुनिया में रहने वाले हर सभ्य व्यक्ति ने अप्रत्याशित आतंकवादी घटनाओं से साक्षात्कार को अपनी नियति बना लिया है. अमेरिका, यूरोप, एशिया, अफ्रीका और अरब देशों तक कोई भी देश आतंकवाद की बिभीषिका से परे नहीं है. आज दुनिया के समस्त देशों की नीतियों का निर्धारण आतंकवाद के बढ़ते खतरों की पृष्ठभूमि में हो रहा है.लन्दन में सम्भवत: इस शताब्दी की शान्तिकाल की सबसे बड़ी तबाही का षड़यन्त्र विफल होने से निर्दोष लोगों की जान भले ही बच गई हो, परन्तु आतंकवाद का खतरा या ऐसी अन्य घटनाओं की पुनरावृत्ति का खतरा कहीं से कम नहीं हुआ है.11 सितम्बर 2001 को आतंकवादियों ने न्यूयार्क को निशाना बनाकर समस्त विश्व को अपनी शक्ति और उद्देश्यों का परिचय दे दिया था. इस घटना के पश्चात प्राय: हर वर्ष एक नया देश इन आतंकवादियों की सूची में जुड़ जाता है. 2002 में बाली में धमाके कर आतंकवादियों ने दक्षिण पूर्व एशिया सहित आस्ट्रेलिया तक लोगों को आतंक से परिचित कराया, फिर 2004 में स्पेन के शहर मैड्रिड में रेलसेवा में विस्फोट किया. अगले वर्ष 2005 में लन्दन की परिवहन सेवा इनका निशाना बनी और 2006 में विनाश लीला से भारत की आर्थिक राजधानी मुम्बई का सक्षात्कार हुआ. अभी मुम्बई की घटना को एक माह भी व्यतीत नहीं हुये हैं कि लन्दन में एक व्यापक आतंकवादी षड़यन्त्र के विफल होने से समस्त विश्व स्तब्ध है.लन्दन में जिस विस्फोट की योजना रची गई थी यदि वह सफल होती तो क्या होता कहने की आवश्यकता नहीं है. इन विस्फोटों में जिस तकनीक के प्रयोग की बात की जा रही है वह तरल विस्फोटक अत्यन्त आधुनिक रॉकेट तकनीक में प्रयोग की जाती है अर्थात आतंकवाद का यह खेल कुछ गुमराह और बेरोजगार नौजवानों का खेल नहीं रह गया है जैसा कि आम तौर पर कहा जाता है, यह एक सुनियोजित आन्दोलन है जिसमें बड़े स्तर पर वैज्ञानिक और इन्जीनियर भी संलग्न हैं.2001 में न्यूयार्क में हुये आतंकवादी आक्रमण से लेकर आज तक जितने भी बड़े आतंकवादी हमले हुये हैं उनमें उच्च श्रेणी के शिक्षित और अच्छी पृष्ठभूमि के लोगों की संख्या अधिक रही है. मुझे यह लिखते हुये जितना कष्ट हो रहा है उतना ही आपको पढ़ने में भी अरूचिकर होगा कि इन आतंकवादी आक्रमणों में मुसलमानों की संख्या शत प्रतिशत रही है.आखिर ऐसा क्या कारण है कि अच्छी पृष्ठभूमि का मुस्लिम नवयुवक जो हमारे आपके बीच में रहता है हमारी आपकी तरह बात करता है अचानक अपने ही देशवासियों का दुश्मन बन जाता है. कुछ लोग इसके पीछे मुस्लिम असन्तोष और पूरी दुनिया में उन पर हो रहे अत्याचार को कारण मानते हैं. लेकिन क्या कोई कारण इतना बड़ा हो सकता है कि वह हजारों निर्दोष लोगों के प्राण लेने को न्यायसंगत ठहरा सके.अभी पिछले दिनों जब कनाडा में बहुत बड़े आतंकवादी आतंकवादी षड़यन्त्र का पर्दाफाश हुआ तो कनाडा से मेरे मित्र ने ई-मेल के माध्यम से आश्चर्यमिश्रित आवेश में पूछा कि आखिर हमारे लोकतन्त्र ने आप्रवासी मुसलमानों को क्या नहीं दिया यहाँ तक कि सरकारी खर्चे पर उन्हें अंग्रेजी सिखाने का प्रबन्ध भी किया इसके बाद भी हमारे बीच के मुसलमानों ने ही संसद और प्रधानमन्त्री के विरूद्ध योजना रची. आज ऐसे कितने ही प्रश्न वातावरण में गूँज रहे हैं. भारत और ब्रिटेन जैसे देश जिन्होंने मुसलमानों को देश के कानून से अंशकालिक स्वतन्त्रता दे दी. भारत में परिवार नियोजन, विवाह, तलाक जैसे सभी मुद्दों पर मुस्लिम समुदाय देश के कानून का पालन नहीं करता और पर्सनल लॉ से शासित होता है . देश में न्यायालय होते हुये भी शरियत अदालतों को महत्व देता है, विद्यालयों में वन्देमातरम् न गाने की स्वतन्त्रता का पालन करता है. सुदूर देश में बनने वाले पैगम्बर के कार्टून के विरोध में सार्वजनिक सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाता है . इसके बाद भी भारत में मुसलमानों के उत्पीड़न की काल्पनिक धारणा बनाकर उन्हें न्याय दिलाने के नाम पर देश में धर्म के नाम पर आतंकवाद को प्रश्रय दिया जा रहा है.विश्व में चल रहा इस्लामी आतंकवाद ऐस दौर में पहुँच चुका है जहाँ उसकी धार्मिक भूमिका की अवहेलना नहीं की जा सकती. जो संगठन समस्त विश्व में निर्दोष लोगों को निशाना बना रहे हैं उन्होंने अपना आशय स्पष्ट कर दिया है कि वे विश्व में खिलाफत का राज्य स्थापित करना चाहते हैं जो पूरी तरह कुरान और शरियत पर आधारित हो. उनके लिये आतंकवाद उनका धार्मिक दायित्व है जो वे मुजाहिदीन बन कर पूरा कर रहे हैं.आतंकवाद के इस दौर में यह जिम्मेदारी मुसलमानों की है कि वे आगे आकर या तो इस्लाम के इस स्वरूप को स्वीकार करें या फिर इसका खण्डन करें अन्यथा गैर मुस्लिमों के लिये यह पूर्वानुमान लगा पाना असम्भव होगा कि उनके आस पास रहने वाला मुसलमान कब अपने धार्मिक दायित्व को पूरा करते हुये उसका दुश्मन बन जायेगा.यह आतंकवाद महज कानून की समस्या नहीं है इसके पीछे धार्मिक जुनून है. लन्दन के षड़यन्त्र के सामने आने से स्पष्ट है कि वह दिन दूर नहीं जब इस्लामी आतंकवादियों के पास परमाणु बम भी होगा और उसका प्रयोग करने में उन्हें हिचक नहीं होगी.
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