हिंदू जागरण

हिंदू चेतना का स्वर

लोरेटो मामले से सबक

Posted by amitabhtri पर सितम्बर 13, 2006

अभी पिछले दिनों लखनऊ के प्रतिष्ठित कैथोलिक मिशनरी स्कूल में अन्धविश्वासी चमत्कार के बहाने ईसा मसीह के प्रति बच्चों के मन में श्रद्धा उत्पन्न करने का कपट का खेल सामने आया है. इस घटना ने अपने पीछे अनगिनत सवाल छोड़े हैं.     इस पूरे घटनाक्रम का आरम्भ पिछले सप्ताह तब हुआ जब लोरेटो कान्वेन्ट स्कूल के एक कार्यक्रम में पश्चिम बंगाल से विशेष रूप से आये एक व्यक्ति ने बच्चों के समक्ष कुछ प्रदर्शन करते हुये सिद्ध करने का प्रयास किया कि उसके अन्दर ईसा मसीह प्रवेश करते हैं. इस प्रदर्शन के क्रम में उसने अजीब सी हरकतें कीं जिससे अधिकांश बच्चे भयाक्रान्त होकर बेहोश हो गये. बेहोशी की इस घटना के पश्चात अभिभावकों ने इस घटना का संज्ञान लेते हुये इस कृत्य पर नाराजगी जाहिर की. परन्तु इसी बीच कुछ तत्वों ने विद्यालय परिसर में पहुँच कर तोड़फोड़ भी की. यद्यपि यह तोड़फोड़ स्वाभाविक आक्रोश से अधिक राजनीतिक उद्देश्य से प्रेरित अधिक लगती है फिर भी इस पूरे मामले के कुछ सबक भी हैं.        ईसाई मिशनरियों द्वारा सेवा और शिक्षा के नाम पर धर्मान्तरण का गोपनीय एजेण्डा चलाने की बात अनेक अवसरों पर होती आयी है, परन्तु लोरेटो स्कूल की इस घटना ने इसे कुछ हद तक सत्य सिद्ध कर दिया है.       वैसे तो वनवासी और पिछड़े क्षेत्रों में इस क्षेत्र के निवासियों के भोलेपन का फायदा उठाकर उनका धर्म परिवर्तित कराने में इन मिशनरियों को अधिक असुविधा नहीं होती परन्तु शिक्षित लोगों के मध्य ऐसे हथकण्डे सफल होते नहीं दिख रहे हैं. अभी कुछ महीने पहले ही दक्षिण भारत के प्रमुख तीर्थ स्थल तिरूपति बाला जी में धर्मान्तरण के प्रयास ईसाई मिशनरियों द्वारा किये गये थे. परन्तु वहाँ भी यह प्रयास श्रद्धालुओं की सतर्कता और सजगता के कारण सफल न हो सका. अब लोरेटो जैसे प्रतिष्ठित संस्था का उपयोग धार्मिक एजेण्डे को आगे बढ़ाने में करने के प्रयास से कैथोलिक संस्थाओं के आशय पर प्रश्नचिन्ह लग गया है.            पिछले कुछ महीनों में घटी इन घटनाओं से हिन्दू संगठनों के इन आरोपों में सच्चाई दिखती है कि ईसाई मिशनरियाँ अपने सेवा कार्यों की आड़ में धर्मान्तरण का व्यवसाय चला रही हैं. इससे पहले पूर्वोत्तर क्षेत्रों में भी ऐसे अनेक प्रसंग सुनने में आये हैं जब  शिवलिंग और लकड़ी के क्रास की तुलना कर चालाकी पूर्वक शिवलिंग को पानी में डुबोकर और क्रास को तैराकर वनवासियों को ईसा की शक्ति का झूठा अहसास कराया गया है. इसी प्रकार चंगाई सभा में अपने ही आदमी के हाथ में फेविकोल लगाकर उसे कुष्ठ रोगी के रूप में चित्रित कर ईसा के नाम पर हजारों की भीड़ में उसे स्वस्थ करने के छलपूर्ण दावे भी मिशनरी दाँव पेंच का हिस्सा हैं.           मिशनरियों के इस दाँवपेंच के बीच एक प्रमुख सवाल यह उभरता है कि क्या अच्छी पढ़ाई के लालच में अपने बच्चों को कान्वेन्ट स्कूलों में भेजने वाले अभिभावकों को शिक्षा के साथ संस्कृति और धर्म के अन्तरण के लिये भी तैयार रहना चाहिये. कुछ भी हो इस पूरे प्रकरण से इतना तो साफ है कि कैथोलिक संस्थाओं की नीयत साफ नहीं है और सफेद चोंगे के पीछे छुपकर बड़ी सरलता और मधुरता से बातें करने वाले फादर वास्तव में कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना की तर्ज पर काम कर रहे हैं.

एक उत्तर दें

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  बदले )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  बदले )

Connecting to %s

 
%d bloggers like this: