आतंकवादियों की नई रणनीति
Posted by amitabhtri पर नवम्बर 24, 2007
23 नवम्बर की सुबह प्रत्येक दिन की भाँति समस्त देश के लिये समान थी परन्तु दोपहर आते-आते देश का एक प्रदेश आतंकवादियों की कुदृष्टि का शिकार हो गया। देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश में तीन स्थानों पर कुछ ही अन्तराल पर तीन विस्फोट हुये। प्रदेश की राजधानी लखनऊ धार्मिक नगरी वाराणसी और एक और महत्वपूर्ण धार्मिक नगरी अयोध्या से कुछ ही दूरी पर स्थित फैजाबाद में ये धमाके हुये। वैसे इन धमाकों के लिये एक धार्मिक नगरी और दूसरी उसके निकट की नगरी को निशाना बनाया गया परन्तु इस बार निशाना धार्मिक नगरी या धर्मस्थल नहीं थे। इस बार के विस्फोटों ने आतंकवादियों की बदली हुई रणनीति हमारे समक्ष प्रस्तुत हुई। आतंकवादियों ने सिविल कोर्ट और वकीलों को अपने निशाने पर लिया है। आतंकवादियों की इस रणनीति के अपने सन्देश और उद्देश्य हैं।
खुफिया सूत्रों के अनुसार इस घटना से हूजी ( हरकत-उल-जेहाद-ए-इस्लामी) और जैश-ए-मोहम्मद के तार जुड़े हो सकते हैं। इनके तार जुड़ने के अपने कारण हैं। उत्तर प्रदेश के इन शहरों की विभिन्न जेलों में हूजी के आतंकवादी बन्द हैं जो पिछले वर्षों में अयोध्या में श्रीरामजन्मभूमि परिसर पर आक्रमण, वाराणसी में संकटमोचन मन्दिर परिसर पर हमले सहित लखनऊ में अनेक आतंकवादी घटनाओं के सन्दर्भ में जेलों में बन्द हैं। इस बार आतंकवादियों ने न्याय प्रक्रिया पर हमला बोला है। न्यायालय परिसर और वकील देश की व्यवस्था के सुचारू संचालन और लोकतन्त्र पर लोगों के विश्वास के प्रतीक हैं इस कारण उन पर आक्रमण करने से न केवल न्यायिक प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होगी वरन् आम जनता में भी आतंक का भाव व्याप्त होगा। अब प्रश्न खड़ा होता है कि आतंकवादियों ने सोची समझी रणनीति के अन्तर्गत वकीलों और न्यायालय को निशाना क्यों बनाया जबकि वे अपनी पिछली रणनीति पर चलकर भीड़ भरे इलाकों में विस्फोट कर या धार्मिक स्थलों को निशाना बनाकर भी अपना जिहाद का सन्देश प्रशासन और जनता को दे सकते थे। वकीलों और न्यायालय को निशाना बनाने की रणनीति आतंकवादियों के वैश्विक चिन्तन और उनकी जिहादी रणनीति के नये पैंतरों को स्पष्ट करती है।
अभी कुछ दिनों पूर्व जब जैश के तीन आतंकवादी लखनऊ में पकड़े गये तो न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किये गये कथित आतंकवादियों को वकीलों ने लखनऊ के न्यायालय में पीटा। इससे पूर्व पिछले वर्षों में जब अयोध्या में श्रीरामजन्मभूमि जब आक्रमण के प्रयास में दोषी आतंकवादियों को पकड़ा गया और उन पर मुकदमा चलाने की नौबत आई तो फैजाबाद बार एसोसिएशन ने एक स्वर से निर्णय लिया कि कोई भी स्थानीय वकील आतंकवदियों की पैरवी नहीं करेगा। इस निर्णय का परिणाम यह हुआ कि आतंकवादियों के लिये बाहर से वकील जुटाने पड़े। वकीलों के इस निर्णय के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश में विशेष कार्य बल द्वारा त्वरित कार्रवाई करते हुये वाराणसी में संकट मोचन मन्दिर में हुए आक्रमण के सम्बन्ध में इलाहाबाद के एक मदरसा शिक्षक को मास्टर माइण्ड के रूप में गिरफ्तार किया था। इस गिरफ्तारी के उपरान्त जामा मस्जिद के शाही इमाम ने तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार पर मुस्लिम उत्पीड़न का आरोप भी लगाया था। इस प्रचार के बाद भी उत्तर प्रदेश का मुसलमान आम तौर पर आतंकवादियों की गिरफ्तारी का विरोध करते हुये सड़कों पर नहीं उतरा और आतंकवादियों या उनके समर्थकों को मुसलमानों का उस मात्रा में सक्रिय सहयोग नहीं मिला जिस मात्रा में वे अपेक्षा कर रहे थे।
इस परिस्थिति के कारण आतंकवादी संगठन कुछ मात्रा में अपनी जमीन खो रहे हैं और उनकी सारी शक्ति स्लीपर सेल के सहारे चल रही है जहाँ वे आम नागरिकों के बीच घुलमिलकर, राशन कार्ड बनवाकर, किराये पर मकान लेकर और यहाँ तक कि आम लोगों की भाँति रोजगार तक करते हुये आतंकवादी घटनाओं के लिये जमीन तैयार करते हैं और जिहाद की विचारधारा का प्रचार करते हुये आम मुसलमानों को बरगलाने का प्रयास करते हैं। आतंकवादियों को स्लीपर सेल बनाने में तो सहयोग मिल रहा है परन्तु बड़े पैमाने पर आतंकवादी घनाओं को अन्जाम देने के लिये मुस्लिम काडर उन्हें नहीं मिल रहा है। इस कारण अल-कायदा सहित जैश और लश्कर भारत के मुसलमानों से भी असन्तुष्ट है और समय-समय पर मालेगाँव और मक्का मस्जिद जैसी घटनायें घट रही हैं।
उत्तर प्रदेश में तीन शहरों की अदालतों में घटी घटनाओं से स्पष्ट है कि आतंकवादियों को आतंकवादी मामलों में और अन्य आपराधिक मामलों में स्पष्ट विभाजन की वकीलों की मनोवृत्ति पच नहीं रही है। भारत की न्याय व्यवस्था जिस प्रकार की है उसे देखते हुये आतंकवादियों को पूरा विश्वास था कि वे इस व्यवस्था की तकनीकी कमजोरियों का फायदा उठा लेंगे और महानगरों की भाँति छोटे शहरों में भी उन्हें मोटी रकम देकर नामी वकील उनकी पैरवी के लिये मिल जायेंगे परन्तु पहले फैजाबाद और फिर लखनऊ के वकीलों ने आतंकवाद को सामान्य अपराध से पूरी तरह पृथक करते हुये आतंकवाद के प्रति कहीं अधिक संवेदना दिखाई और आतंकवादियों को सामान्य अपराधियों की श्रेणी से अलग रखते हुये पूरी तरह अक्षम्य अपराध माना। उत्तर प्रदेश में वकीलों के इस रूख ने आतंकवादियों को अपनी रणनीति बदलने को विवश किया।
आतंकवादियों द्वारा इस प्रकार बदली गई रणनीति एक और चीज को स्पष्ट करती है कि आतंकवाद कोई कानून व्यवस्था की समस्या नहीं है और यह एक विचारधारागत युद्ध की घोषणा है जिसे टक्कर तभी ली जा सकती है जब इस विचारधारा के मूल तत्वों और संचालक धारा की ओर ध्यान दिया जाये। इस विचारधारागत युद्ध के मूल में इस्लामवादी विचारधारा है जो संगठित धर्म का सहारा लेकर एक मजहबी राज्य की संस्थापना करना चाहता है जो पूरी तरह शरियत और कुरान की व्यवस्था पर आधारित हो। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये वे इस्लाम के कट्टरपंथी स्वरूप की व्याख्या करते हैं और गैर इस्लाम धर्मावलम्बियों के विरूद्ध जिहाद का आह्वान करते हैं।
इस्लामवादियों ने आतंकवाद का सहारा लेकर देशों की व्यवस्था को चुनौती दी है और प्राय: सभी देशों में विस्फोटों, अपहरणों तथा अन्य आतंकी तरीकों के सहारे उनकी स्थापित नीतियों को इस्लामवाद के अनुरूप झुकाने का प्रयास किया है। भारत में 1999-2000 में विमान का अपहरण कर आतंकवादियों को छोड़ने के लिये सरकार को विवश किया और इसी प्रकार अनेक देशों में प्रमुख संस्थानों, परिवहनों पर आक्रमण कर पत्रकारों या सामान्य नागरिकों को अपह्रत कर उन्हें विदेश नीति सम्बन्धी निर्णयों को बदलने पर विवश किया। जैसे इन घटनाओं के बाद अनेक देशों ने इराक से अपनी सेनायें वापस बुला लीं।
भारत में हुई विस्फोट की इन नवीनतम घटनाओं को इसी सन्दर्भ में देखने की आवश्यकता है। इसे आतंकवादियों की बदली हुई रणनीति के रूप में देखकर इससे निपटने की व्यापक रणनीति बनाने की आवश्यकता है। आतंकवादी हमारे समक्ष कुछ दिग्भ्रमित और बेरोजगार नौजवानों के रूप में नहीं आते वरन् एक विचारधारा की परम्परा लेकर आते हैं जो एक कुशल योद्धा की भाँति समय के अनुसार अपनी रणनीति बदलने में माहिर हैं। स्पष्ट है कि इस समस्या का समाधान तभी सम्भव है जब इसे विचारधारागत युद्ध मानकर शत्रु की पहचान की जाये और उसी अनुरूप रणनीति बनाई जाये।
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