बुरे फंसते बुश
Posted by amitabhtri पर दिसम्बर 7, 2007
हाल ही में अमेरिका की कुछ खुफिया एजेन्सियों द्वारा ईरान के परमाणु कार्यक्रम के सम्बन्ध में नवीन रहस्योद्घाटनों से अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश अपनी विदेश नीति को लेकर घिरते नजर आ रहे हैं। अमेरिकी की कुछ खुफिया एजेन्सियों द्वारा रिपोर्ट दी गई है कि ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को 2003 में ही विराम दे दिया था। इस रिपोर्ट को लेकर अमेरिका सहित समस्त विश्व में अनेक तरह की प्रतिक्रियायें हुईं। अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश ने खुफिया रिपोर्टों पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम अभी भी विश्व के लिये एक खतरा है और उन्होंने विश्व समुदाय को इस खतरे के प्रति सचेत किया। वहीं इस रिपोर्ट पर अपनी प्रतिक्रिया में विदेश मन्त्री कोण्डोलिजा राइस ने कहा कि यह रिपोर्ट दर्शाती है कि अमेरिका में लोकतान्त्रिक मूल्यों का आदर है और स्वतन्त्रता है जबकि ईरान में ऐसा नहीं है।
इन प्रतिक्रियाओं से स्पष्ट होता है कि अमेरिका में वर्तमान शासन ईरान को लेकर अपनी नीति के प्रति आश्वस्त है तथा खुफिया रिपोर्ट को लेकर उनकी नीति में विशेष अन्तर आता नहीं दिख रहा है। परन्तु इस रिपोर्ट का विश्व समुदाय पर व्यापक असर पड़ने वाला है। जहाँ पहले से ही यूरोप और रूस ईरान पर कड़े प्रतिबन्ध लगाने के पक्ष में नहीं थे वहीं अब यह रिपोर्ट उन्हें ईरान के पक्ष को रखने में मजबूती प्रदान करेगी। विश्व जनमत पर तो इस रिपोर्ट का प्रभाव पड़ेगा ही अमेरिका की आन्तरिक राजनीति भी इससे अनछुई नहीं रह पायेगी। जैसा कि सबको ज्ञात है कि अगले वर्ष अमेरिका में राष्ट्रपति पद के चुनाव होने वाले हैं और इन चुनावों में जार्ज डब्ल्यू बुश की तथाकथित आक्रामक विदेश नीति उनके विरोधियों के निशाने पर है।
डेमोक्रेट सदस्यों ने बुश की विदेश नीति और विशेषकर इराक पर उनके कदम की आलोचना की है और विशेष रूप से यही चुनाव का प्रमुख मुद्दा है। इराक पर आक्रमण के लिये जार्ज डब्ल्यू बुश ने आक्रामक विदेश नीति का सहारा लेते हुये इराक में जनसंहारक हथियारों के होने की बात करते हुये सद्दाम हुसैन के शासन को अपदस्थ करने के लिये इराक पर आक्रमण किया था। परन्तु पूरा युद्ध बीत जाने के बाद भी इराक में जनसंहारक हथियारों के होने का कोई प्रमाण नहीं मिला। जार्ज डब्ल्यू बुश की रिपब्लिकन पार्टी ने पहले आक्रमण की नीति के अन्तर्गत अमेरिका के निवासियों को आश्वस्त किया कि यह युद्ध उनकी सुरक्षा के लिये है और यह नई विदेश नीति है जिसके अन्तर्गत शत्रु के आक्रमण करने से पूर्व ही उसे नष्ट करने की नीति का पालन किया जा रहा है। नई विदेश नीति का हवाला देकर करदाताओं के धन को इराक युद्ध में झोंका गया परन्तु जल्द ही यह युद्ध अमेरिका की जनता की सुरक्षा से अधिक इराक की जनता के कल्याण के रूप मे दिखने लगा। अमेरिकी सेना की उपस्थिति ने जहाँ एक ओर मध्य-पूर्व के मुस्लिम देशों में गैर-मुस्लिम शासन को अस्वीकार करने की प्रवृत्ति को बलबती करते हुये एक विशेष प्रकार के आतंकवाद को जन्म दिया तो वहीं इराक में अमेरिका के बदलते युद्ध उद्देश्य अमेरिकी जनता को पसन्द नहीं आये। अमेरिका के करदाता अपनी सुरक्षा के लिये तो धन खर्च करने को तैयार हैं परन्तु इराकी जनता के कल्याण के लिये सेना की तैनाती के लिये धन खर्च करने को वे तैयार नहीं हैं। यही कारण है कि जार्ज बुश इराक की अपनी नीति को लेकर घरेलू मोर्चे पर आलोचना के शिकार हो रहे हैं।
ईरान पर आई नई खुफिया रिपोर्ट से बुश के उन आलोचकों को बड़ा सम्बल मिला है जो निओ कन्जर्वेटिव लोगों द्वारा संचालित अमेरिका की अति महत्वाकाँक्षी नीति का विरोध इस आधार पर करते हैं कि यह करदाताओं के धन का अपव्यय है। इसी महत्वाकाँक्षी विदेश नीति के अन्तर्गत समस्त विश्व में हस्तक्षेप बढ़ाना शामिल है। ऐसी खबरें आ रही थीं कि जार्ज डब्ल्यू बुश अपना कार्यकाल समाप्त होते-होते ईरान पर आक्रमण कर देंगे। अब नई परिस्थितियों में उनके लिये ऐसा करना इतना सहज नहीं होगा।
11 सितम्बर 2001 के पश्चात उपजी सहानुभूति के चलते तथाकथित आतंकवाद के विरूद्ध युद्ध को लेकर विश्व स्तर पर जो गठबन्धन बना था और अमेरिका ने इस युद्ध को लेकर जो समर्थन प्राप्त किया था वह तीन वर्षों में समाप्त हो गया और अमेरिका के विरोध में अनेक देश खुलकर सामने आ गये । यह एक ऐसा विषय था जिस पर जार्ज बुश को आत्मविश्लेषण कर गम्भीरतापूर्वक विचार करना चाहिये था परन्तु ऐसा करने के बजाय उन्होंने अपनी भूलें जारी रखीं और तेल प्राप्त करने की अभिलाषा और मध्य-पूर्व में इजरायल के बहाने अनी स्थिति सुदृढ़ करने का अभियान जारी रखा। ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर उस पर आक्रमण करने की योजना में भी कहीं न कहीं इजरायल का तत्व काम कर रहा है परन्तु हमें नहीं भूलना चाहिये कि इजरायल अपनी रक्षा करने में स्वयं समर्थ है।
वैसे तो कुछ लोग ईरान की परमाणु महत्वाकाँक्षा को इराक में अमेरिका की तैनाती से उत्पन्न हुआ भय मानते हैं। कुछ भी हो अमेरिकी खुफिया एजेन्सियों की नई रिपोर्ट से जार्ज बुश की मुश्किलें अवश्य बढ़ गई हैं।
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