मलेशिया में विरोध प्रदर्शन क्यों?
Posted by amitabhtri पर दिसम्बर 7, 2007
इन दिनों मलेशिया चर्चा में है। कारण मलेशिया में निवास करने वाले भारतीय नस्ल के लोगों द्वारा विरोध प्रदर्शन। इस विरोध प्रदर्शन के अपने कारण हैं। मलेशिया में निवास करने वाले भारतीय नस्ल के लोगों का आरोप है कि उनके साथ नस्ली आधार पर भेदभाव किया जा रहा है तथा मलेशिया के मूल मलयों की अपेक्षा उन्हें जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उपेक्षित किया जा रहा है।
भारतीय नस्ल के लोग कोई दो सौ वर्ष पूर्व अंग्रेजों द्वारा मलेशिया मजदूर बनाकर ले जाये गये थे। अपने परिश्रम के बल पर उन्होंने न केवल उस देश के विकास में अपना योगदान दिया वरन् अपनी अलग पहचान भी बनाई। भारतीय नस्ल के इन लोगों में तमिल और मलयालम भाषी अधिक हैं। उस देश में जाकर भी उन्होंने अपनी हिन्दू हचान बरकरार रखी और जगह-जगह मन्दिर बनाये। परिस्थितियों में विशेष परिवर्तन तब आया जब 1957 में अंग्रेजों के उपनिवेश से इस देश को मुक्ति मिल गई तथा अनेक नवस्वतन्त्र देशों की भाँति इस देश को भी एक संविधान मिला और उस संविधान के अनुच्छेद 8 और 11 के अन्तर्गत मलेशिया के निवासियों को क्रमश: समता का अधिकार और धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार मिला। परन्तु संविधान के अनुच्छेद 153 के अन्तर्गत मूल मलय निवासियों को कुछ विशेषाधिकार दिये गये हैं। हालांकि भारतीय नस्ल के प्रति भेदभाव के विषय पर लम्बे समय से आन्दोलन चला रहे भारतीय नस्ल के मलेशिया के नागरिक और अधिवक्ता वेदमूर्ति के अनुसार मूल संविधान में अनुच्छेद 153 की व्यवस्था कुछ मय के लिये की गई थी और संविधान सभा में इस विषय पर भारतीय नस्ल के लोगों से सहमति भी नहीं ली गई थी। वेदमूर्ति के अनुसार मूल मलय संविधान के इसी प्रावधान को आधार बनाकर अपने लिये विशेषाधिकार और भारतीय नस्ल के लोगों के प्रति हीन भावना रखने को सही मानते हैं।
मलेशिया में भारतीय नस्ल के लोगों का विरोध न तो अचानक है और न ही स्वत:स्फूर्त है । वेदमूर्ति सहित भारतीय नस्ल के पाँच अधिवक्ता भारतीय नस्ल के लोगों के प्रति भेदभाव को लेकर लम्बे समय से अपने सांविधानिक अधिकारों का प्रयोग करते हुये आन्दोलन चला रहे हैं। उनके इस आन्दोलन पर भारतीय नस्ल के बीस लाख मलेशिया निवासियों की पैनी नजर थी और अब इस सुलगती हुई आग ने एकदम से गति पकड़ ली है।
इस आन्दोलन के गतिमान होने के दो प्रमुख कारण हैं। एक तो भारतीय नस्ल के लोगों की नई पीढ़ी का प्रादुर्भाव और दूसरा कानून का सहारा लेकर धर्म पर आक्रमण जैसे मन्दिर गिराना और जबरन मुसलमान बनाना या शरियत कानून थोपना।
भारतीय नस्ल के जो लोग मजदूर बनाकर मलेशिया ले जाये गये उनका मानना था कि उन्हें इस देश ने रहने का अवसर दिया जो पर्याप्त है इस कारण उन्होंने अपने अधिकारों के लिये आवाज नहीं उठाई परन्तु उनकी नई पीढ़ी जो मलेशिया में ही जन्मी है और वहाँ की नागरिक जन्म से है उनके अन्दर देश में समान अवसर की आकाँक्षा है इसी कारण यह पूरा आन्दोलन नई पीढ़ी के हाथ में है जो विश्व में समान अधिकार और नस्ली समानता जैसे नारों से आकर्षित होकर समान अवसर की माँग कर रहा है। भारतीय नस्ल के लोगों के आन्दोलन के गतिमान होने का एक और कारण धार्मिक भेदभाव है। मलेशिया में भारतीय नस्ल के लोगों की कुल संख्या का 90 प्रतिशत हिन्दू हैं। मलेशिया में 1957 में जब देश स्वतन्त्र हुआ तो पहले से स्थित धार्मिक स्थलों के लिये नये लाइसेन्स और परमिट की आवश्यकता हुई सरकार ने मस्जिदों के लिये नये भूमि कानूनों के अन्तर्गत लाइसेन्स प्राप्त कर लिये परन्तु मन्दिरों के लिये ऐसा कुछ नहीं किया गया। न केवल इतना वरन् कानून की दुहाई देकर इन मन्दिरों को गिराया गया। अब तक मलेशिया में हजारों मन्दिर ढहाये गये हैं। इस बात ने हिन्दुओं के भीतर एक अल्पसंख्यक भय की मानसिकता का विकास किया है। इसी बीच कुछ वर्ष पूर्व घटी एक घटना ने हिन्दू चेतना को और झकझोर दिया जब एवरेस्ट विजेता एक कर्नल को हिन्दू होते हुये भी उसके परिजनों की इच्छा के विपरीत शरियत अदालत के आदेश पर उसे मुस्लिम रीति से दफना दिया गया। इस घटना ने अन्तरराष्ट्रीय परिस्थितियों के साथ मिलकर हिन्दुओं मे इस्लामवादी आधिपत्य का भय विद्यमान कर दिया और इसी चेतना के चलते अनेक वर्षों से भारतीय नस्ल के लोगों के लिये चल रहा प्रयास आन्दोलन बन कर खड़ा हो गया। वेदमूर्ति अब भारतीय नस्ल के लोगों के साथ हो रहे अन्याय और भेदभाव के बारे में घूम-घूमकर विभिन्न देशों में सम्पर्क करने का अभियान आरम्भ कर दिया है। निश्चय ही उनके इस अभियान से यह विषय अन्तरराष्ट्रीय पटल पर आ जायेगा। वेदमूर्ति तो इंग्लैण्ड की दीवानी अदालत में जाकर उपनिवेश के दौरान भारतीय नस्ल के लोगों के साथ हुये भेदभाव को लेकर क्षतिपूर्ति भी माँगने वाले हैं। निश्चय ही ऐसे मुद्दे को प्रचार ही देंगे।
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