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इस्लाम में बेचैनी ?

Posted by amitabhtri पर अप्रैल 5, 2008

लोकमंच ने अपने पिछले कुछ लेखों में उल्लेख किया है कि किस प्रकार पश्चिम और इस्लाम आपस में टकराव की मुद्रा में आ गये हैं। इस्लामी और पश्चिम जगत में घट रही घटनायें इसी प्रवृत्ति की ओर बार बार संकेत कर रही हैं। पिछ्ले महीने दो विशेष घटनायें घटित हुईं जो इस्लाम और पश्चिम तथा कैथोलिक चर्च के मध्य सम्बन्धों में और तनाव उत्पन्न कर सकती हैं और इनमें से एक घटना तो निश्चय ही ऐसी है जो दीर्घगामी स्तर पर प्रभाव डाल सकती है।

 

22 मार्च को ईसाइयों के मह्त्वपूर्ण पर्व ईस्टर के दिन वेटिकन में रोमन कैथोलिक चर्च के सर्वश्रेष्ठ धर्मगुरु पोप बेनेडिक्ट ने मिस्र मूल के मुसलमान और पिछ्ले काफी वर्षों से इटली में निवास कर रहे मगदी आलम को पूरे विधिविधान से ईसाइत में दीक्षित कर लिया। मगदी आलम पिछ्ले काफी वर्षों से इटली में निवास कर रहे थे और इस विषय पर भी मतभेद था कि मगदी आलम क्या आस्थावान मुसलमान थे या नहीं। यह विषय सर्वप्रथम 2007 में चर्चा में आया था जब लन्दन के मेयर द्वारा आयोजित एक सम्मेलन में मध्य पूर्व के प्रसिद्ध विद्वान और इस्लामी विषयों के जानकार डा. डैनियल पाइप्स ने इस्लामवाद से लडाई के लिये सभ्यतागत लोगों के मध्य सहयोग की आवश्यकता जताते हुए उन्होंने मगदी आलम को एक इस्लाम धर्मानुयायी बताया जो नरमपंथी हैं और उनका सहयोग लेने की बात कही। इस बात पर एक और इस्लामी विद्वान तारिक रमादान ने आपत्ति जताते हुए डा. डैनियल पाइप्स पर लोगों को गुमराह करने का आरोप लगाते हुए कहा कि मगदी आलम एक ईसाई हैं। डा. डैनियल पाइप्स ने इसका खण्डन किया और प्रमाणित किया कि मगदी आलम एक मुसलमान हैं। यह सन्दर्भ यहाँ इसलिये महत्वपूर्ण है कि इस्लामी विषयों पर नजर रखने वाले लोगों के मध्य यह खासी चर्चा का विषय बना था। यह भ्रम इसलिये भी बना क्योंकि मगदी आलम का मध्य का नाम क्रिस्टोफर है। परंतु जब 22 मार्च को पोप ने विधिवत ढंग से मगदी आलम का धर्मांतरण कराया तो इस विषय में कोई सन्देह नहीं रह गया कि मगदी आलम एक मुसलमान थे।

 

यह विषय अत्यंत मह्त्व का इसलिये है कि इतने बडे पैमाने पर एक वैश्विक मह्त्व वाले दिन एक महत्वपूर्ण मुसलमान का धर्मांतरण करा कर कैथोलिक चर्च ने क्या सन्देश देने का प्रयास किया है। विशेषकर इन समाचारों के मध्य कि विश्व में कैथोलिक जनसंख्या अब मुसलमानों के बाद दूसरे स्थान पर आ गयी है। यहाँ यह तथ्य ध्यान देने योग्य है कि कुल ईसाई अब भी मुसलमानों से अधिक हैं केवल कैथोलिक सम्प्रदाय दूसरे स्थान पर आ गया है।

 

मगदी आलम ने धर्मांतरण के उपरांत तत्काल एक बयान दिया और अपने पुराने धर्म पर टिप्पणी करते हुए कहा कि समस्त विश्व में जो कुछ भी आतंकवाद इस्लाम के नाम पर चल रहा है उसके लिये इस्लाम धर्म भी उत्तरदायी है। इस घटना के अपने निहितार्थ हैं। अर्थात कैथोलिक सम्प्रदाय अपनी संख्या की पूर्ति के लिये उन मुसलमानों को अपने शिविर में लाने से परहेज नहीं करेगा जो इस्लाम धर्म बदलना चाहेंगे। इससे इस्लाम और कैथोलिक चर्च में टकराव सुनिश्चित है। क्योंकि अभी तक चर्च खुलेआम मुसलमानों का धर्मांतरण करने से परहेज करता था और अंतर्धार्मिक बह्स के लिये इस्लाम से बातचीत के लिये अधिक उत्सुक दिख रहा था। परंतु अब इस नये घटनाक्रम से स्पष्ट है कि चर्च इस्लाम के विषय पर अधिक आक्रामक रणनीति अपनाने की फिराक में है जिसमें धर्मांतरण का जवाब धर्मांतरण से देने की नीति अपनाई गयी है।

इस्लामी विश्व में किसी मुसलमान को अपना धर्म छोडने की आज्ञा नहीं है और ऐसा करने पर उसके लिये मृत्युदण्ड का विधान है। मगदी आलम के धर्मांतरण से भी ऐसे ही प्रश्न उठने वाले हैं क्योंकि मगदी आलम एक इस्लामी राज्य का मूलनिवासी है। तो क्या यह माना जाये कि यह धर्मांतरण एक विशेष राजनीतिक सन्देश है जो इस्लाम धर्म के उन तमाम अनुयायियों को एक सन्देश है जो इस्लाम में बेचैनी अनुभव कर रहे हैं परंतु धर्मांतरण के कडे नियमों के चलते धर्म बदलने के बारे में नहीं सोच पाते। यह इस्लाम की दृष्टि से एक ऐतिहासिक घटना है क्योंकि इससे पूर्व जितने भी मुसलमानों ने इस्लाम की आलोचना की थी उन्होंने धर्म परिवर्तन के विकल्प पर विचार नहीं किया था चाहे वह सलमान रश्दी हों, तस्लीमा नसरीन हों या फिर  सोमालिया मूल की अयान हिरसी अली हों। इन लोगों ने यूरोप के देशों में या अन्य देशों में शरण तो ले ली परंतु धर्म नहीं छोडा।

 

इसके पीछे मुख्य रूप से दो प्रमुख कारण थे एक तो ये लोग इस्लाम धर्म छोडने को लेकर इस्लाम में मृत्युदण्ड की व्यवस्था से चिंतित थे और अपने जीवन पर और अधिक संकट नहीं लाना चाह्ते थे और दूसरा कारण यह कि सामान्य रूप से पश्चिम और विशेष रूप से कैथोलिक चर्च इस्लाम के साथ प्रत्यक्ष रूप से टकराव मोल नहीं लेना चाह्ता था। तो प्रश्न यह उठता है कि अब परिस्थितियों में ऐसा क्या परिवर्तन आ गया  है कि चर्च इस्लाम के मह्त्वपूर्ण व्यक्ति का धर्मांतरण करने में कोई हिचक नहीं दिखा रहा है जबकि कैथोलिक चर्च के साथ इस्लाम की ओर से अंतर्धार्मिक बातचीत में लगे प्रतिनिधि भी मानते हैं कि मगदी आलम के ईसाई बनने से से दोनों के मध्य सद्भाव के प्रयास को झटका लगेगा और दोनों पक्षों के सम्बन्धों में तनाव आ सकता है।

 

कैथोलिक चर्च के दृष्टिकोण में यह परिवर्तन अचानक नहीं आया है। कैथोलिक चर्च पिछ्ले कुछ वर्षों से इस्लामी जगत के मध्य यह विषय उठाता रहा है कि यदि ईसाई बहुल देशों में इस्लाम धर्म के अनुयायियों को हर प्रकार की धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त है और उन्हें प्रार्थना करने या मस्जिद बनाने की स्वतंत्रता है तो फिर मुस्लिम बहुल देशों में भी ईसाई धर्म के अनुयायियों को यही स्वतंत्रता मिलनी चाहिये और समानता के इस सिद्धांत पर जोर पोप जान पाल के समय से ही देना आरम्भ कर दिया गया था जब वैटिकन के विदेश मंत्री स्तर के जीन लुइस तौरोन ने पहली बार 2003 में स्पष्ट रूप से कहा था कि मुस्लिम बहुल देशों में ईसाइयों के साथ द्वितीय श्रेणी के नागरिकों जैसा व्यवहार हो रहा है।  पोप बेनेडिक्ट के समय में इस सिद्धांत पर अधिक आग्रह किया जाने लगा। इसी का परिणाम था कि अनेक अरब देशों में चर्च बनाने के प्रस्तावों पर चर्चा होने लगी यह बात और है कि इसका स्थानीय कट्टरपंथी मौलवियों ने कडा विरोध किया और ऐसे प्रस्तावों का प्रतिफल अभी तक सामने नहीं आया है परंतु ऐसे प्रस्तावों पर चर्चा कैथोलिक चर्च के कठोर रूख की ओर संकेत अवश्य देता है तो क्या माना जाये कि चर्च अब अधिक मुखर होकर इस्लाम और ईसाइत के मध्य समानता के सिद्धांत को अपनाना चाह्ता है।

इसके अतिरिक एक और घटनाक्रम है जो पश्चिम के कठोर रूख की ओर संकेत करता है वह है हालैण्ड के सांसद और नेशनल फ्रीडम पार्टी के नेता गीर्ट वाइल्डर्स द्वारा कुरान पर एक फिल्म का निर्माण और उसका प्रदर्शन। इस फिल्म के सम्बन्ध में पिछ्ले अनेक महीनों से चर्चा थी और इसके निर्माण से पूर्व ही इस पर काफी विवाद हो रहा था। हालाँकि इस फिल्म में सनसनीखेज या विवादित कुछ भी नहीं है फिर भी तमाम विवादों के बीच इस कानून निर्माता ने जिस प्रकार फिल्म के निर्माण फिर इसके प्रसारण में अपनी सक्रियता दिखाई है वह यूरोप की इस्लाम के प्रति बदलती मानसिकता का परिचय देता है।

 

मगदी आलम के धर्मांतरण और वाइल्डर्स की फिल्म के निर्माण और प्रसारण में जो अत्यंत उल्लेखनीय बात रही वह यह कि दोनों ही घटनाओं पर कोई ऐसी प्रतिक्रिया नहीं हुई जिसकी आशंका जतायी जा रही थी। प्रतिक्रिया नहीं होने से ऐसी घटनाओं को करने या अपने धर्म और मूल्यों के प्रति अधिक आग्रह की प्रवृत्ति पश्चिम में और बढेगी और इससे इस्लाम में बेचैनी और अधिक बढेगी।

इस्लाम में बेचैनी की कुछ  मह्त्वपूर्ण घटनायें पिछ्ले दिनों घटित हुईं जिस पर विश्व की मीडिया का ध्यान बिल्कुल नहीं गया। इसी वर्ष यूरोप  के कुछ समाचार पत्रों में पैगम्बर मोहम्मद के कार्टून पुनः प्रकाशित होने पर इस्लामी विश्व में एक दूसरे प्रकार का चिंतन आरम्भ हुआ। फरवरी के अंत में एक कार्यक्रम में भाग लेते हुए यमन के प्रधानमंत्री अली मोहम्मद मुजावर ने प्रस्ताव किया कि विश्व स्तर पर ऐसे कानून का निर्माण होना चाहिये जो किसी भी धर्म के अपमान को आपराधिक कृत्य घोषित करे और धर्मों के समान सम्मान की भावना पर जोर दे। उन्होंने पश्चिम से अनुरोध किया कि वे इस्लाम की भावनाओं का सम्मान करें अन्यथा अस्थिरता ही बढेगी।

 

इसी प्रकार का प्रस्ताव सऊदी अरब सलाहकार समिति ने सऊदी सरकार को दिया तथा विदेश मंत्रालय से आग्रह किया कि वह अन्य अरब देशों, मुस्लिम देशों तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ मिलकर ऐसे प्रस्ताव पर विचार करें कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसी सन्धि की जाये कि प्रत्येक धर्म के प्रतीकों, पैगम्बरों का सम्मान करते हुए सभी धर्मों के सम्मान को बल प्रदान किया जाये। सऊदी अरब सलाहकार समिति या मजलिसे अश शुरा की ओर से यह प्रस्ताव मोहम्मद अल कुवाहेश ने यूरोप और अमेरिका में पैगम्बर के कार्टूनों के प्रकाशन की प्रतिक्रिया में रखे थे। परंतु यह प्रस्ताव समिति ने 77 के मुकाबले 33 मतों से निरस्त कर दिया। इस प्रस्ताव को निरस्त करने के पीछे प्रमुख कारण यह बताया गया कि सभी धर्मों के प्रतीकों का सम्मान करने की अंतरराष्ट्रीय सन्धि का अर्थ होगा शेष धर्मों के प्रतीकों का सम्मान करना जो कि मुसलमानों के लिये सम्भव नहीं है। दूसरा कारण यह बताया गया कि इससे इस्लामी देशों में गैर मुसलमानों को अपने उपासना केन्द्र स्थापित करने की अनुमति मिल जायेगी।

 

इस घटनाक्रम के अपने निहितार्थ हैं। एक तो यह घटनाक्रम बताता है कि चतुर्दिक इस्लाम पर हो रहे हमलों से इस्लामी धार्मिक नेतृत्व और सामाजिक नेतृत्व बेचैन है और इसके लिये रास्ता निकालने का प्रयास कर रहा है और वहीं दूसरी ओर समस्त विश्व में इस्लाम की अनेक प्रवृत्तियों को लेकर मंथन आरम्भ हो गया है और इस्लाम के नाम पर चल रहे आतंकवाद या फिर शरियत लागू करने की इस्लामी मतानुयायियों की इच्छा के आगे विश्व झुकने के स्थान पर अधिक आग्रह पूर्वक इसका प्रतिरोध करने की तैयारी कर रहा है। इस सम्बन्ध में यूरोप ने पहल की है और इस्लाम को कठोरतापूर्वक सन्देश देने का प्रयास किया है कि वह अपने इस्लामीकरण के लिये तैयार नहीं है इसके स्थान पर वह अपनी संस्कृति और मूल्यों के प्रति अधिक सजग हो रहा है।

जहाँ यूरोप और चर्च ने अपना आग्रह दिखाकर राजनीतिक और सांस्कृतिक सन्देश दिया है वहीं इस्लाम मतावलम्बी बेचैनी अनुभव कर रहे हैं और अनेक विकल्पों पर विचार कर रहे हैं कि इस्लाम की छवि को सुधारा जा सके। इस क्रम में भारत में बडे बडे मुस्लिम सम्मेलन आयोजित  कर आतंकवाद की निन्दा की जा रही है परंतु ये प्रयास छवि सुधारने की कवायदें मात्र हैं क्योंकि आज तक इस्लामी धर्मगुरुओं ने उन मुद्दों को स्पर्श करने का प्रयास कभी नहीं किया जो वास्तव में समस्त विश्व के गैर मुसलमानों के लिये आशंका और चिंता के कारण हैं।

 

आज समस्त विश्व में जो वातावरण बन रहा है वह कतई उत्साहजनक नहीं है और संकेत यही मिल रहे हैं कि आने वाले दिनों में टकराव का यह वातावरण और भी तनावपूर्ण ही होने वाला है। विशेषकर कैथोलिक चर्च और यूरोप की भावभंगिमा से तो यही संकेत मिलता है कि इस्लाम और पश्चिम तथा कैथोलिक चर्च के मध्य सम्बन्ध सामान्य नहीं हैं और विश्व की शेष सभ्यतायें भी शीघ्र ही इसका अनुसरण करने लगें और इस्लाम के प्रति सशंकित हो जायें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिये।  

8 Responses to “इस्लाम में बेचैनी ?”

  1. safat alam said

    आपने एक व्यक्ति के इस्लाम धर्म त्यागने की जो उदाहरण पेश की है वास्तव में वह मुसलमान ही नहीं था वरना धर्म त्याग न करता । इस्लाम ही तो सम्पूर्ण संसार का धर्म है । इसी में सारे मानव की मुक्ति है और कोई धर्म मुक्ति का साधन है ही नहीं । बस आवश्यकता है कि आप इस्लाम के सम्बन्ध में पढ़ कर देखें । इस ब्लौग का अवश्य दर्शन करें आशा है कि ईश्वर आपका हृदय खोल दे http://safat.ipcblogger.com/blog/

  2. Dr.Adhura said

    agare ye dharm na hota na koi isai na muslim hota .nahi dharm privrtan ki bat hoti na aaps me ber hota .hum sab bhai bhai hote .ager yekmabath dharam na hota.

  3. julie said

    agar muslim dharam na hota to mere kareeb aai vo ladki islami bumb say na maari jati.safat ji aap afganistan jaao or dekho islmi bomb ko. aaj porri duniya ka jeena haram kare huai hai.kisi ka baap mar raha hai kisi ka suhag ujad raha hai.koi apahiz ho gaya hai. kash ye muslim dharam na hota.to duniya kitni sukun vali hoti.

    thanks
    julie

  4. musalman apne jaan dega islam nahi cohdga

  5. imran khan said

    is blog par likhe gaye vichar me ne padhe,muje ascharya huva ke logo ko islam ke bareme malum nahi he,”dunya me kitne islami dase hai woh pehle malum kijiye”! uskebad aap ke muh se kehlate aatankvadi muslim deso ke name jo aapko malum he unke Per.(%) nikalye, dekhye kitne Per.hote he, aap ko javab mill jayega.

  6. Haris Sohail said

    Agar ye kambhakt musalman hi nahin tha. Ek Admi Jo Musalman Hi nahin tha Uske Ketholik Hone se Kya Hota hai. Hazaron Katholik Islam Qabool Kar Rahe hain. Aur Allah ke karam se AMERICA, Europe mein sabse Zyada Log Islam Qabool kar Rahe. The Fastest Growing Religion is Islam, Akele USA mein Hi Har Sal Laghbhag 20000 (Twenty Thousand)Log Islam Qabool Kar Rahe Hain. Ye Jankari Aap Internet Par Dekh Sakte hain.
    ITIHAS UTHA KAR DEKH LIJIYE ISLAM WO PODHA HAI JITNA KATOGE UTNA HARA HOGA.

  7. sary hindu bhi ko mara adab app ko my batana cahta hu ki islam kabi kisi ko islam dharam key liya magbur nahi karta aur kareeb 10002000 isiam manny waly logo my eak ka islam na manna koi bahut badi bat nahi is bat say musalman logo ki iman my koi kami na ho ge or allha hindu bai ky dil my iman gagay ameen

  8. अमोद श्रीवास"अंबर" said

    इस्लाम संसार में सिर्फ तलवार के बल पर,जोर जबरदस्ती से फैला । इसिलिये आतंकवादी बम और बारूद की भाषा बोलते हैं । 99% आतंकवादी मुसलमान क्यों?

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