हिंदू जागरण

हिंदू चेतना का स्वर

आतंकवाद से कब लडेगा भारत

Posted by amitabhtri पर मई 3, 2008

अमेरिका के राज्य विभाग की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार भारत उन देशों में है जो आतंकवाद से बुरी तरह प्रभावित हैं। रिपोर्ट के अनुसार भारत में जम्मू कश्मीर, उत्तर पूर्व और नक्सलवादियों द्वारा किये गये आतंकवादी आक्रमणों में वर्ष 2007 में कुल 2,300 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पडा है।

 राज्य विभाग ने आतंकवाद से सम्बन्धित अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि जम्मू कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर आतंकवादी घटनाओं में कमी आयी है परंतु पकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन जैसे लश्कर-ए-तोएबा सहित अनेक आतंकवादी गुट अभी भी घाटी में आक्रमण करने की योजना बना रहे हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तोएबा तथा अन्य कश्मीर केन्द्रित आतंकवादी संगठन क्षेत्रीय आक्रमण की योजना बना रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2007 में कश्मीर केन्द्रित आतंकवादी गुटों ने अफगानिस्तान में आक्रमणों को सहायता देनी जारी रखी और इन गुटों द्वारा प्रशिक्षित सदस्य अल-कायदा के अंतरराष्ट्रीय आक्रमणों की योजना में भी दिखते रहे।

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत सरकार के आतंकवाद प्रतिरोध प्रयास कालातीत कानून व्यवस्था और बहुतायत में मामलों के न निपटने से न्यायपालिका पर बोझ के चलते प्रभावित हो रहे हैं।

रिपोर्ट के अनुसार भारत में न्यायालय की व्यवस्था काफी धीमी और जटिल है और इसमें भ्रष्टाचार की सम्भावनायें हैं।भारत में बहुत से पुलिस दल का स्टाफ दयनीय है, उनमें प्रशिक्षण का अभाव है और उन्हें आतंकवाद से लड्ने के लिये पर्याप्त शस्त्र भी उपलब्ध नहीं कराये गये हैं।

पिछ्ले वर्ष फरवरी में समझौता एक्सप्रेस में हुए विस्फ़ोट की चर्चा करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है यह अतिवादियों द्वारा हिन्दू और मुसलमान दोनों मे आक्रोश भरने के लिये किया गया था। रिपोर्ट के अनुसार ऐसे आक्रमण जिसमें हिन्दू और मुसलमान दोनों ही मारे जाते हैं उसका उद्देश्य अतिवादियों द्वारा हिन्दू और मुस्लिम समुदाय के मध्य आक्रोश पैदा करना होता है।

रिपोर्ट के अनुसार भारत के अधिकारियों का दावा है कि इन आक्रमणों का सम्बन्ध पाकिस्तान और बांग्लादेश स्थित आतंकवादी संगठनों लश्कर-ए-तोएबा, जैशे मोहम्मद और हरकत उल जिहाद इस्लामी से है। रिपोर्ट के अनुसार इन गुटों का सम्बन्ध जम्मू कश्मीर में होने वाली आतंकवादी घटनाओं से भी है। आतंकवादी घटनाओं में मारे गये नागरिकों की संख्या पिछ्ले वर्ष के मुकाबले लगभग आधा है।

 

रिपोर्ट  के अनुसार मई में भारत सरकार ने माना कि नियंत्रण रेखा के उस पार से घुसपैठ में कमी आयी है परंतु रिपोर्ट ने यह भी कहा है कि कुछ मामलों में आतंकवादियों ने घुसपैठ का अपना मार्ग बदल दिया है और वे बांग्लादेश और नेपाल के रास्ते भारत में प्रवेश कर रहे हैं।

रिपोर्ट में भारत और पाकिस्तान के मध्य आतंकवाद विरोधी प्रणाली पर सहमति की बात भी की गयी है जहाँ दोनों देश एक दूसरे के मध्य समन्वय स्थापित कर आतंकवाद के सम्बन्ध में परस्पर सूचनाओं का आदान-प्रदान करेंगे।

रिपोर्ट में भारत सरकार के रक्षा मंत्री के सार्वजनिक बयान की चर्चा करते हुए कहा गया है कि पाकिस्तान के नेताओं ने कश्मीरी आतंकवाद को सहयोग में कमी की है और इसके परिणामस्वरूप 2006 के मुकाबले 2007 में कश्मीर में हिंसक घटनाओं में 50 प्रतिशत की कमी आयी है।

रिपोर्ट में भारत और अमेरिका के आतंकवाद के सम्बन्ध में संयुक्त कार्य बल की भी चर्चा की गयी है जो 2000 में स्थापित हुआ था और अब तक नौ बार बैठ चुका है।

भारत ने इस संयुक्त कार्यबल में 15 अन्य देशों के साथ भाग लिया है और बहुपक्षीय कार्यबल में यूरोपीय संघ के साथ शामिल है। यह संगठन भारत , बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका, थाईलैण्ड, भूटान और नेपाल के मध्य आर्थिक सहयोग को प्रोत्साहन देता है।

 रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख भी किया गया है कि भारत सरकार ने पाकिस्तान के साथ अक्टूबर में आतंकवाद प्रतिरोध के सम्बन्ध में संयुक्त प्रणाली के अंतर्गत द्विपक्षीय बात की और आतंकवाद प्रतिरोध के सम्बन्ध में मंत्री स्तर की बैठक भी आयोजित की।

अमेरिका के राज्य विभाग की आतंकवाद सम्बन्धी इस रिपोर्ट के अपने मायने हैं और इससे अनेक बातों की पुष्टि भी होती है। ऐसे अनेक तथ्य जो इस रिपोर्ट में दिये गये हैं उन तर्कों को प्रमाणित करते है जो तर्क समय समय पर आतंकवाद प्रतिरोधी नीति के सम्बन्ध में सरकार  को दिये जाते हैं। अमेरिका की राज्य विभाग की रिपोर्ट से स्पष्ट है कि भारत कि न्याय व्यवस्था नयी परिस्थितियों में उस स्तर की नहीं रह गयी है जहाँ से आतंकवादियों को तत्काल दण्डित किया जा सके या उन्हें जमानत जैसी सुविधायें तत्काल न मिल सकें। इसी के साथ पुलिस बल की ओर की जा रही उपेक्षा भी आतंकवाद प्रतिरोध की दिशा में बडी बाधा हैं। विशेषकर नक्सली आक्रमणों में पुलिस बल में इस दक्षता का अभाव स्पष्ट रूप से दृष्टिगत होता है।

परंतु आतंकवाद से लड्ने में केवल यही बाधायें हैं क्या? इसके अतिरिक्त भी अनेक विषय हैं जिनकी चर्चा राज्य विभाग की इस रिपोर्ट में हो भी नहीं सकती थी क्योंकि वह भारत का आंतरिक मामला है और उस पर बोलने का अधिकार किसी बाहरी संस्था को है भी नहीं। परंतु आपसी तौर पर इस चर्चा से हम मुँह नहीं मोड सकते और वह है भारत सरकार का आतंकवाद को वोट बैंक की राजनीति से जोडकर देखना। इस सम्बन्ध में नवीनतम उदाहरण हमारे समक्ष 13 दिसम्बर 2001 को संसद पर हुए आक्रमण के दोषी अफजल गुरू का है। भारत की सर्वोच्च न्यायिक संस्था सर्वोच्च न्यायालय द्वारा संसद पर आक्रमण के लिये दोषी पाये जाने पर अफजल गुरू को मृत्युदण्ड दिये जाने के बाद भी यह निर्णय अभी तक क्रियान्वित नहीं किया गया है और यही नहीं तो भारत सरकार की ओर से विषय को टाला जा रहा है। जबकि हमारे सामने 2000 का एक दुखद प्रसंग है जब एक खूँखार आतंकवादी को लम्बे समय तक जेल में रखने के कारण ही भारतीय विमान अपहरण काण्ड हुआ और मसूद अजहर को छोड्ना पडा और वहाँ से आतंकवाद ने नया आयाम ग्रहण किया। भारत सरकार जैश के ही एक और मृत्युदण्ड प्राप्त आतंकवादी अफजल गुरू को  राष्ट्रपति द्वारा क्षमायाचना के नाम पर जेल में रखकर आतंकवादियों को न केवल एक और कन्धार करने का आमंत्रण दे रही है वरन आतंकवादियों को सन्देश दे रही है कि वह उनके एक समुदाय विशेष के होने के कारण उनसे पूरी सहानुभूति रखती है।

भारत में आतंकवाद को सदैव वोट बैंक की राजनीति से जोड्कर देखा जाता है और इसी का परिणाम है कि पहले 1991 में नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी की सरकार के मुसलमानों के दबाव में आकर टाडा कानून वापस ले लिया और उसके बाद 2004 में सरकार में आते ही एक बार फिर कांग्रेस ने पोटा कानून वापस ले लिया। आज भारत में एक भी ऐसा कानून नहीं है जो आतंकवाद की विशेष परिस्थितियों को देखते हुए और आतंकवादियों के विशेष चरित्र को देखते हुए उन्हें तत्काल और प्रभावी प्रकार से दण्डित करने के लिये प्रयोग में आ सके। आज सभी राजनीतिक दलों के नेता केवल भाजपा को छोड्कर इस बात पर सहमत दिखते हैं कि सामान्य आपराधिक कानूनों के सहारे आतंकवाद से निपटा जा सकता है। वास्तविकता तो यह है कि यह एक बहुत बडा झूठ है। हमारे सामने एक नवीनतम उदाहरण है कि किस प्रकार टाडा के विशेष न्यायालय में मुकदमा होते हुए भी मुम्बई बम काण्ड के अपराधियों को सजा मिलने में कुल 15 वर्ष लग गये और सजा मिलने के बाद भी एक के बाद एक अपराधी जमानत पर छूटते जा रहे हैं। आखिर जब हमारी न्याय व्यवस्था जटिल तकनीकी खामियों का शिकार हो गयी है जो आतंकवादियों को बच निकलने का रास्ता देती है तो फिर कडे और ऐसे कानूनों के आवश्यकता और भी तीव्र हो जाती है जो तत्काल जमानत या फिर आतंकवाद के मामले में जमानत के व्यवस्था को ही समाप्त कर दे। यह कोई नयी बात नहीं है। पश्चिम के अनेक देशों ने ऐसे कठोर कानून बना रखे हैं और इसके परिणामस्वरूप वे अपने यहाँ आतंकवादी घटनायें रोकने में सफल भी रहे हैं। परंतु भारत के सम्बन्ध में हम ऐसी अपेक्षा नहीं कर सकते।

इसी प्रकार एक और आतंकवाद भारत में तेजी से पाँव पसार रहा है और वह है नक्सली आतंकवाद। इस विषय को भी भारत में पूरी तरह राजनीतिक ढंग से लिया गया है। केन्द्र सरकार पूरी तरह वामपंथियों के समर्थन पर निर्भर है और कांग्रेस इस गठबन्धन को आगे कई वर्षों तक जारी रखना चाहती है। जैसा कि कुछ दिनों पहले प्रसिद्ध राजनीतिक टीकाकार अमूल्य गांगुली ने टाइम्स आफ इण्डिया में लिखा था कि कांग्रेस 2010- 11 में राहुल गान्धी को प्रधानमंत्री बनाने की योजना पर कार्य कर रही है और इस योजना की पूर्ति के लिये कांग्रेस को वामपंथियों का सहयोग अत्यंत आवश्यक है। इस कारण कांग्रेस वर्तमान व्यवस्था को किसी भी प्रकार छेड्ना नहीं चाह्ती और इसलिये वामपंथी आतंकवाद की ओर से न केवल आंखे मूँदे हुए है वरन उसे राजनीतिक विचारधारा मानकर हरसम्भव उसका सहयोग कर रही है। जैसा उसने नेपाल में किया और माओवादियों के नेतृत्व को नेपाल में आने का अवसर दिया।

 

 

 नेपाल में माओवादियों की विजय के बाद भारत सरकार के विदेश मंत्री और पश्चिम बंगाल से कांग्रेस के नेता प्रणव मुखर्जी ने इस विजय का स्वागत किया। अब ऐसे समाचार मिल रहे हैं कि मार्क्सवादी कम्युनिष्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो के सदस्य सीताराम येचुरी नेपाल में नयी सरकार के निर्माण को सुनिश्चित करने के लिये मध्यस्था की भूमिका एक बार फिर निभा रहे हैं। जिस प्रकास नेपाल के मामले में वामपंथी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं और कांग्रेस हरसम्भव उनका सहयोग कर रही है उससे साफ है कि अब अगले कदम के रूप में भारत के नक्सलियों और माओवादियों को मुख्यधारा में लाने के रूप में ऐसे कदम उठाये जायेंगे जो नक्सलियों या माओवादियों को अपनी शक्ति और प्रभाव बढाने में सहायक होंगे। निश्चय ही आने वाले समय में ऐसी कोई सम्भावना नहीं दिखती कि भारत सरकार आतंकवाद का प्रतिरोध करने के लिये तत्पर होगी। ऐसा सम्भव भी कैसे है जब सरकार का अस्तित्व उन तत्वों पर निर्भर है जो स्वयं आतंकवाद को प्रोत्साहन देते हैं।

One Response to “आतंकवाद से कब लडेगा भारत”

  1. garvjeet said

    kangresh ke pas to demag bhe nahi he bhagvan unhi budhi de

एक उत्तर दें

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  बदले )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  बदले )

Connecting to %s

 
%d bloggers like this: