पिछले दिनों 13 दिसम्बर को दिल्ली में इंडियन मुजाहिदीन द्वारा किये गये बम विस्फोटों के बाद आतंकवादियों की तलाश में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में अनेक स्थानों पर पुलिस ने छापेमारी की और दक्षिणी दिल्ली के जामिया नगर क्षेत्र में एल-18 के एक फ्लैट में मुठभेड में कुछ आतंकवादियों को मार गिराया और एक को गिरफ्तार किया। इस मुठभेड और गिरफ्तारी के बाद अनेक सनसनीखेज रह्स्योद्घाटन हुए और मुठभेड के बाद कथित मकान की देखरेख कर रहे अब्दुर्ररहमान और उनके पुत्र जियाउर्ररहमान ने कुछ टीवी चैनलों पर आकर इस पूरे मामले में दिल्ली पुलिस को घेरने की कोशिश की और मारे गये आतंकवादियों के सम्बन्ध में मकान पर किराये लेने की औपचारिकता पूरी करवाने में पुलिस की लापरवाही सिद्ध कर स्वयं को इस पूरे मामले से अनभिज्ञ दिखाने की चेष्टा की। लेकिन दिल्लीवासियों सहित पूरे देश को तब आश्चर्य हुआ जब मकान की रखवाली करने वाले अब्दुर्रहमान और उनके पुत्र जियाउर्रहमान को पुलिस ने इस पूरे षडयंत्र में बराबर का साझीदार बताया तथा और तो और जो जियाउर्ररहमान अत्यंत भोले भाले अन्दाज में टीवी चैनल को बता रहा था कि मारे गये आतंकवादियों को वह जानता नहीं था उसके बारे में दिल्ली पुलिस ने बताया कि उसने दिल्ली में अनेक स्थान पर बम भी रखने में सहयोग किया और आतंकवादियों को हर प्रकार का रणनीतिक सहयोग भी उपलब्ध कराया। जब पुलिस की जांच आगे बढी तो पाया गया कि जियाउर्रहमान के साथ एक शकील भी आतंकवाद के इस षडयंत्र में शामिल है और ये दोनों ही दिल्ली के अत्यंत प्रतिष्ठित जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के छात्र हैं।
इन छात्रों के आतंकवादी गतिबिधियों में लिप्त होने के आरोप में पुलिस द्वारा गिरफ्तारी के बाद जामिया मिलिया इस्लामिया प्रशासन की पहली प्रतिक्रिया आयी कि इन छात्रों को विश्वविद्यालय से निलम्बित कर दिया गया है लेकिन इस निर्णय के उपरांत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर मुशीरुल हसन ने घोषणा की कि विश्वविद्यालय की ओर से तीन सदस्यीय समिति का गठन किया जा रहा है जो आतंकवाद के आरोप में गिरफ्तार छात्रों को हर प्रकार की सहायता उपलब्ध करायेगी ताकि उनके आरोप सिद्ध होने से पहले तक कानूनी सहायता प्राप्त हो। इसके साथ ही कुलपति महोदय ने पूरे विषय को एक भावनात्मक मोड दिया और छात्रों को सम्बोधित करते हुए कहा कि यह संकट का अवसर है और इससे हम सबको मिलकर लड्ना है। कुलपति ने पुलिस को निशाना बनाया और कहा कि सभी को पता है कि पुलिस कैसे जांच करती है। प्रोफेसर मुशीरुल हसन जो कि देश के सेकुलर पंथियों में एक उदारवादी मुसलमान और श्रेष्ठ बुद्धिजीवी के रूप में स्थान रखते हैं और देश की अधिकाँश समस्यायों के पीछे संघ परिवार और हिन्दू आन्दोलन को देखते हैं उन्होंने इस पूरे मामले में मीडिया को भी घेरा और कहा कि वह रिपोर्टिंग के लिये उडीसा, कर्नाटक और गुजरात जाये। कुलपति द्वारा जामिया मिलिया इस्लामिया के दो छात्रों के आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त होने के आरोपी होने के बाद इसे एक संक़ट सिद्ध कर देने से विश्वविद्यालय के छात्रों ने आतंकवाद के आरोपी छात्रों की कानूनी सहायता के लिये सहायता कोष एकत्र करना आरम्भ कर दिया है। विश्वविद्यालय ने आतंकवाद के आरोपी छात्रों की सहायता के लिये जो तीन सदस्यीय समिति गठित की है उसमें शामिल किये गये लोगों की छवि प्रायः उदारवादी मुसलमानों की रही है जो जिहाद को आत्मसंघर्ष के रूप में परिभाषित करते रहे हैं और जिहाद के नाम पर आतंकवाद करने की आलोचना करते आये हैं।
जामिया प्रशासन द्वारा आतंकवाद के आरोप में पकडे गये अपने दो छात्रों के सम्बन्ध में लिये गये निर्णय के अनेक निहितार्थ हैं।
इस्लामी आतंकवाद के सम्बन्ध में अब यह तर्क पुराना हो गया है कि यह कुछ गुमराह नौजवानों का काम है जो किसी उत्पीडन या बेरोजगारी के चलते ऐसा कर रहे हैं। इसके साथ ही आतंकवादियों के पक्ष में मुस्लिम समाज सहित तथाकथित सेकुलरपंथियों का खुलकर सामने आना एक सामान्य बात हो गयी है। और तो और अब आतंकवादियों के समर्थन में पुलिस को अपराधी बनाना और उसके प्रयासों को झूठा सिद्ध करना साथ उसके द्वारा पकडे गये लोगों को निर्दोष सिद्ध करने के लिये आक्रामक बौद्धिक प्रयास चलाना भी इस्लामी आतंकवाद का नया आयाम है। इसके अतिरिक्त एक अन्य आयाम यह जुडा है कि देश के अत्यंत श्रेष्ठ बौद्धिक लोग इस्लामी आतंकवाद को न्यायसंगत ठहराने के लिये मुस्लिम उत्पीडन की काल्पनिक अवधारणा सृजित करने में अपनी बौद्धिक क्षमता का उपयोग कर रहे हैं। अनेक ऐसे लेखक मिल जायेंगे जो अत्यंत परिश्रम पूर्वक यह प्रयास कर रहे हैं कि भारत राज्य की व्यवस्था में मुस्लिम उत्पीडन और भेदभाव को स्थापित किया जाये ताकि इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप इस्लामी आतंकवाद को न्यायसंगत सिद्ध किया जा सके।
प्रोफेसर मुशीरुल हसन का इस प्रकार आतंकवाद के आरोपियों के पक्ष में खुलकर आना और पुलिस को अपराधी सिद्ध कर आतंकवादियों को निर्दोष घोषित करना अनेक प्रश्न खडॆ करता है। मुशीरुल हसन वही व्यक्ति हैं जिन्होंने कुछ महीनों पूर्व देश के कुछ कुलपतियों के प्रतिनिधिमण्डल के साथ इजरायल की यात्रा की थी और इजरायल के सम्बन्ध में देश में अधिक मुस्लिम समझ बढाने की दिशा में प्रयास करने का आश्वासन इजरायल को दिया था। यह उदाहरण स्पष्ट करता है कि मुशीरुल हसन इस कदर इस्लामवादी नहीं हैं कि वे इजरायल को देखना भी पसन्द न करें फिर ऐसे अपेक्षाकृत बुद्धिजीवी मुसलमान का देश के विरुद्ध आक्रमण की घोषणा करने वाले संगठन इंडियन मुजाहिदीन के सदस्यों की खुलकर वकालत के क्या मायने है?
इस विषय को समझने के लिये हमें अनेक सन्दर्भों को समझना होगा। जामिया मिलिया इस्लामिया की स्थापना भारत के प्रमुख इस्लामी संगठन दारूल उलूम देवबन्द के प्रमुख सदस्य ने स्थापित किया था और पहले यह अलीगढ में था और कुछ वर्षों बाद यह दिल्ली आया। दारूल उलूम देवबन्द एक ऐसी कट्टरपंथी विचारधारा का पोषक है जिसमें से तालिबान और उसके प्रमुख मुल्ला उमर जैसे लोग पैदा हुए हैं। कुछ महीनों पहले दारूल उलूम देवबन्द ने अनेक आतंकवाद विरोधी सम्मेलन आयोजित कर आतंकवाद और इस्लाम को असम्पृक्त करने का प्रयास भी किया परंतु इस सभी सम्मेलनों में जिस प्रकार सशर्त ढंग से आतंकवाद की निन्दा की गयी उससे स्पष्ट है कि इस्लामी आतंकवाद को इस्लाम से असम्पृकत रखते हुए भी मुस्लिम उत्पीडन की काल्पनिक अवधारणा के आधार पर उसका समर्थन करने का व्यापक षड्यंत्र रचा जा रहा है।
वास्तव में समस्त विश्व में इस्लामवाद एक आन्दोलन के रूप में चलाया जा रहा है जिसका मूलभूत उद्देश्य वर्तमान विश्व व्यवस्था को ध्वस्त कर नयी विश्व व्यवस्था का निर्माण करना है जो कुरान और शरियत पर आधारित है और इसे प्राप्त करने के लिये राज्य को आतंकित कर उसके संस्थानों को ध्वस्त करना इनकी कार्ययोजना है।
विश्व स्तर पर एक बडा परिवर्तन आया है कि 1991 में सोवियत रूस के विघटन के बाद वामपंथी विचार के लोग पूरी तरह असहाय और अप्रासंगिक हो गये और उनके लिये पूँजीवाद और अमेरिका को पराजित करना असम्भव लगने लगा और इसी कारण समस्त विश्व के वामपंथियों ने आर्थिक चिंतन के साथ ही इस्लाम के प्रति भी सहानुभूति दिखानी आरम्भ कर दी और धीरे धीरे इजरायल और फिलीस्तीन का विवाद उनके एजेण्डे में ऊपर आ गया। इस प्रक्रिया में वामपंथ इस्लामवादी आन्दोलन और मुस्लिम उत्पीडन की काल्पनिक अवधारणा को समर्थन देने लगा और समस्त विश्व की समस्याओं के मूल में अमेरिका और इजरायल को रख दिया गया। आज समस्त विश्व में इस्लामवाद के नयी विश्व व्यवस्था के निर्माण और कुरान तथा शरियत पर आधारित व्यवस्था विश्व पर लादने के प्रयासों के समर्थन में मुस्लिम उत्पीडन के तर्क वामपंथी चिंतकों द्वारा ही तैयार किये जा रहे हैं फिर वह नोम चोम्सकी हों या विलियम ब्लम।
11 सितम्बर 2001 को अमेरिका पर हुए इस्लामी आतंकवादी आक्रमण के बाद विश्व भर के वामपंथियों को यह विश्वास हो गया कि जो काम स्टालिन, लेनिन और माओ नहीं कर सके वह काम इस्लामी आतंकवादी कर ले जायेंगे और इनकी सहायता से अमेरिका को पराजित किया जा सकता है।
जिस प्रकार विश्व भर के वामपंथियों ने 11 सितम्बर को अमेरिका पर हुए आक्रमण के उपरांत खुलकर इस्लामी आतंकवादियों का समर्थन करना आरम्भ कर दिया है वही रूझान अब भारत में भी देखने को मिल रहा है। 11 सितम्बर 2001 को अमेरिका पर हुए आक्रमण को लेकर भारत में वामपंथियों और उनके सहयोगी सेकुलरपंथियों ने इसे अल कायदा और अमेरिका के बीच का संघर्ष बताया और साथ ही साथ वैश्विक स्तर पर इस्लामवाद का समर्थन करते हुए लेख लिखे, धरना प्रदर्शन किया और तो और आज से चार वर्ष पूर्व केरल में हुए विधानसभा चुनावों में वामपंथियों ने फिलीस्तीनी नेता और इंतिफादा में हजारों यहूदियों को आत्मघाती आक्रमणों मे मरवाने वाले यासिर अराफात के चित्र को लेकर और आईए ई ए में ईरान के विरुद्ध भारत सरकार के मतदान को चुनाव का मुद्दा बनाया और कांग्रेस को बुरी तरह पराजित किया। ऐसे कम ही अवसर भारतीय लोकतंत्र में होंगे जब विदेश नीति को साम्प्रदायिकता के साथ जोडा गया और मुस्लिम वोट प्राप्त किया गया।
इसके बाद जब डेनमार्क में इस्लाम के पैगम्बर मोहम्मद का कार्टून प्रकाशित किया गया तो वामपंथियों ने अनेक सेकुलरपंथियों के साथ मिलकर इस्लामवादियों का साथ दिया और सड्कों पर उतर कर अनेक स्थानों पर हिंसा का मार्ग प्रशस्त किया। इसी प्रकार जब अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश ने जब भारत की यात्रा की तो वामपंथियों और सेकुलरपंथियों ने इस्लामवादियों के साथ मिलकर देश में अनेक स्थानों पर बडी बडी रैलियाँ कीं और आगंतुक राष्ट्रपति को संसद का संयुक्त सत्र संसद भवन में सम्बोधित नहीं करने दिया और सांसदों को दिल्ली में अन्य किसी स्थान पर एकत्र करना पडा।
इन सभी घटनाक्रमों में केवल एक बात सामान्य रही कि सभी मामलों में इस्लामवादियों के एजेण्डे का समर्थन भारत के वामपंथियों और सेकुलर पंथियों ने किया।
जिस समय अमेरिका पर आक्रमण हुआ या फिर यूरोप के देश इस्लामी आतंकवाद का शिकार हुए तो भारत में वामपंथी और सेकुलरपंथी इसे पश्चिम के अन्याय के विरुद्ध इस्लामवादियों की प्रतिक्रिया बताकर भारत को इस्लामी आतंकवाद से लड्ने की तैयारी करने से रोकते रहे और इस बात की प्रतीक्षा करते रहे कि भारत में इस्लामी आतंकवादी कब भारत के राज्य को चुनौती देते हैं और जब 2004 के बाद से भारत में देशी मुसलमानों द्वारा आतंकवादी घटनायें की जानें लगीं तो इनके पक्ष में यह वर्ग खुलकर सामने आने लगा। 2001 में जो लोग जिहाद को आत्मसंघर्ष सिद्ध कर रहे थे अब वे मुस्लिम उत्पीडन की काल्पनिक अवधारणा के समर्थन में आ गये हैं और राज्य तथा पुलिस को उत्पीडक सिद्ध कर आतंकवादी घटनाओं को न्यायसंगत ठहरा रहे हैं। ऐसा इसलिये हुआ है कि देश में वामपंथियों और सेकुलरपंथियों को विश्वास हो गया है कि इंडियन मुजाहिदीन जैसे इस्लामी संगठन राज्य को चुनौती देने में सक्षम हैं और वे उनके लक्ष्य में सहायक हैं। प्रोफेसर मुशीरुल हसन जैसे लोग इसी भावना के वशीभूत होकर आतंकवाद के आरोप में गिरफ्तार अपने विश्वविद्यालय के छात्रों का समर्थन कर रहे हैं जिनकी दृष्टि में भारत में सेकुलरिज्म का संतुलन बनाये रखने के लिये आवश्यक है कि देश पर हिन्दू संगठनों का वर्चस्व कम हो और यह काम इंडियन मुजाहिदीन जैसे आतंकवादी संगठन ही कर सकते हैं तभी उन्होंने उडीसा और कर्नाटक में चर्च और ईसाइयों पर हुए हमलों को देश के सेकुलर ताने बाने के लिये खतरा बताते हुए विहिप और बजरंग दल को कोसा परंतु 13 दिसम्बर को दिल्ली पर हुए आतंकवादी आक्रमण के बाद उसकी निन्दा करना भी उचित नहीं समझा और बाद में मुस्लिम उत्पीडन की काल्पनिक अवधारणा के सहारे आतंकवाद और आतंकवादियों का समर्थन करने लगे।
इस्लामी आतंकवाद के इस नये आयाम को इसी सन्दर्भ में समझने की आवश्यकता है। इस्लामी आतंकवाद को सही ढंग से समझने के लिये आवश्यक है कि इसके मूलस्रोत और मूल प्रेरणा को समझा जाये। आज जो भी शक्तियाँ भारत में व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर हिंसक गतिविधियों में लिप्त हैं उन सभी शक्तियों के आपस में गठजोड करने की पूरी सम्भावना है और इसका उदाहरण हमें मिल भी चुका है जब अमरनाथ में भूमि प्राप्त करने के आन्दोलन के समय माओवादियों ने पहली बार कश्मीर में इस्लामी आतंकवादियों का समर्थन करने की घोषणा करते हुए कश्मीर के संघर्ष में अपना सहयोग देने का वचन दिया और कश्मीर की स्वतंत्रता का समर्थन किया। इससे पहले मई माह में केरल में इस्लामी आतंकवादियों और नक्सलियों की पहली संयुक्त बैठक हुई थी और साम्राज्यवाद, राज्य आतंकवाद और हिन्दू फासीवादियों से एक साथ लड्ने का संकल्प व्यक्त किया गया था। यह एक नये ध्रुवीकरण का संकेत है जिसमें वर्तमान व्यवस्था के स्थान पर एक काल्पनिक विश्व व्यवस्था स्थापित करने में प्रयासरत शक्तियाँ एक साथ आ रही हैं और इन सभी को इस्लामी आतंकवादी अपने सहयोगी दिखायी दे रहे हैं। इस्लामी आतंकवाद का मुकाबला करने के लिये राज्य को तो कठोर कदम उठाने ही होंगे विचारधारा के स्तर पर हो रहे ध्रुवीकरण को भी ध्यान में रखने की आवश्यकता है इस्लामी आतंकवाद के विरुद्ध विचारधारा के स्तर पर समान शक्तियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साथ लाया जाये।